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"PK का नाम सुनते ही क्यों कांपने लगते हैं मंत्री-सांसद?"

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बिहार की राजनीति में एक अजीब-सा मंजर है—सत्ता के मंत्री और सांसद जनता के बीच चाहे कितने ही बुलंद आवाज़ में भाषण दें, लेकिन जैसे ही नाम आता है प्रशांत किशोर (PK) का, उनके होंठ सूखने लगते हैं, चेहरे से हवाइयाँ उड़ जाती हैं और आत्मविश्वास की परतें अचानक ढह जाती हैं। आखिर क्यों?दरअसल, सत्ता को असली डर आईने से है, और PK वही आईना जनता के सामने रख देते हैं।PK गाँव-गाँव जाकर नेताओं से नहीं, सीधे जनता से संवाद करते हैं। वह भाषण नहीं, सवाल करते हैं—और यही सवाल सत्ता की जड़ों को हिला देते हैं। बिहार के नेता दशकों से जाति और खोखले वादों की बैसाखी पर राजनीति करते आए हैं। लेकिन जब कोई उनसे शिक्षा, रोजगार, अस्पताल, सड़क और विकास की बात करता है, तो उनकी बोलती बंद हो जाती है।सत्ताधारी नेताओं का खौफ इस बात से भी है कि PK महज़ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि जनता में पनप रही बेचैनी की आवाज़ हैं। यह वही बेचैनी है, जिसे नेता अब तक टालते रहे हैं। लेकिन PK के सवालों ने उसे हवा दे दी है।याद रखिए, सत्ता के पास पैसा है, तंत्र है, प्रचार तंत्र है—लेकिन सच्चाई और आंकड़े PK के पास हैं। यही वजह है कि उनके नाम से नेताओं की रातों की नींद उड़ जाती है।बिहार की राजनीति का यह सबसे बड़ा सच है—सत्ता के लिए PK कोई साधारण चुनौती नहीं, बल्कि उनकी राजनीति की पोल खोलने वाली दस्तक हैं। और यही वजह है कि आज सत्ता के मंत्री-सांसद PK का नाम सुनते ही थरथराने लगते हैं। यही है असल तस्वीर—प्रशांत किशोर अब केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति के लिए खौफ का प्रतीक बन चुके हैं।

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